जाग उठो हे अमृतपुत्र तुम अपनी शक्ति पहचानो
मृगेंद्र हो तुम नरेंद्र हो तुम, खडे रहो सीना तानो
बनो खिलाडी क्रीडांगणपर जी जान से खेलो खेल
कुदो गाओ, धूम मचाओ, बना रखो यौवन से मेल
भगवद्गीता क्रीडांगणपर सीखी जाती यह जानो!१
एक व्यक्ति नही विजयी बनता, अच्छा संघ बनाना है
संघ बनाकर एक हृदय हो भारतवंदन करना है
इस पूरब का ज्ञानतेज पश्चिम पर बिखरो दीवानों!२
दरिद्र में जो ना दिख पडता नारायण है बुला रहा
जिस की कानोंपर ध्वनि आई, सेवा में वह मग्न रहा
सेवा पूजा, ज्ञान दक्षिणा अच्छा सेवक शीघ्र बनो!३
बिना ध्येय के जीवन कैसा प्राणवायु आवश्यक है
बिना त्याग के आनंद कैसा, प्रेमशून्यता नरकही है
स्वर्ग नरक अपने ही मन में जाग उठो रे इन्सानो!४
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
२५.१२.२००३
मृगेंद्र हो तुम नरेंद्र हो तुम, खडे रहो सीना तानो
बनो खिलाडी क्रीडांगणपर जी जान से खेलो खेल
कुदो गाओ, धूम मचाओ, बना रखो यौवन से मेल
भगवद्गीता क्रीडांगणपर सीखी जाती यह जानो!१
एक व्यक्ति नही विजयी बनता, अच्छा संघ बनाना है
संघ बनाकर एक हृदय हो भारतवंदन करना है
इस पूरब का ज्ञानतेज पश्चिम पर बिखरो दीवानों!२
दरिद्र में जो ना दिख पडता नारायण है बुला रहा
जिस की कानोंपर ध्वनि आई, सेवा में वह मग्न रहा
सेवा पूजा, ज्ञान दक्षिणा अच्छा सेवक शीघ्र बनो!३
बिना ध्येय के जीवन कैसा प्राणवायु आवश्यक है
बिना त्याग के आनंद कैसा, प्रेमशून्यता नरकही है
स्वर्ग नरक अपने ही मन में जाग उठो रे इन्सानो!४
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
२५.१२.२००३
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