सागर धरती नभ अभिमंत्रित जागृत ग्राहक तेजसे
शिल्प सजाएं भावी विभव का विजयी ग्राहक शक्तिसे!
उपभोगों की भयद लालसा
चारों ओर गहन छायी
स्वाभाविक गरजों की पूर्ति
सांस नही लेने पायी
राह दिखाएं भ्रांत जगत को भारतभू के ज्ञान से!
ग्राहक तो हैं भक्ष्य ही केवल
पश्चिम ने इतना माना
विषयविलासी धन लालाइत
इन को कैसे समझाना
हावी होंगे इस हालत पर गरुडध्वज की संमति से!
जब ग्राहक बलशाली होता
समाजजीवन है निखरा
धर्मसहित धन, उत्पादकता
शुचित्व परिमल हैं न्यारा
इन पुष्पों की मोहक माला गुंथे पावन सूत्र से!
न रहे कोई शोषक शोषित
पीडित वंचित कोई न हो
कौटुंबिक भावना जगाएं
गीता का परिपालन हो
देशी वैभव प्राप्त करेंगे शककर्ता की शैलीसे!
समाज तो हैं स्वयं जागरण
पूजन उसका नित्य करें
ऐश्वर्योपनिषद का हम भी
श्रीगणेश नवयुग में करें
शिल्प सजाएं भावी विभव का विजयी ग्राहक शक्तिसे!
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
शिल्प सजाएं भावी विभव का..
👆🏻 ऑडिओ
शिल्प सजाएं भावी विभव का विजयी ग्राहक शक्तिसे!
उपभोगों की भयद लालसा
चारों ओर गहन छायी
स्वाभाविक गरजों की पूर्ति
सांस नही लेने पायी
राह दिखाएं भ्रांत जगत को भारतभू के ज्ञान से!
ग्राहक तो हैं भक्ष्य ही केवल
पश्चिम ने इतना माना
विषयविलासी धन लालाइत
इन को कैसे समझाना
हावी होंगे इस हालत पर गरुडध्वज की संमति से!
जब ग्राहक बलशाली होता
समाजजीवन है निखरा
धर्मसहित धन, उत्पादकता
शुचित्व परिमल हैं न्यारा
इन पुष्पों की मोहक माला गुंथे पावन सूत्र से!
न रहे कोई शोषक शोषित
पीडित वंचित कोई न हो
कौटुंबिक भावना जगाएं
गीता का परिपालन हो
देशी वैभव प्राप्त करेंगे शककर्ता की शैलीसे!
समाज तो हैं स्वयं जागरण
पूजन उसका नित्य करें
ऐश्वर्योपनिषद का हम भी
श्रीगणेश नवयुग में करें
शिल्प सजाएं भावी विभव का विजयी ग्राहक शक्तिसे!
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
शिल्प सजाएं भावी विभव का..
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