Monday, June 29, 2020

साई स्तवन..

साई, हूँ मैं आपका, आप हमारे साई है।
जहॉं देखूँ तहॉं साई है, साई साई साई हैं।। १ ।।
आप हमारे रखवाले, कर्ता, धर्ता, भर्ता हैं।
ब्रह्मा, विष्‍णु, श्रीमहेशजी साई साई साई हैं।। २ ।।
धूप दीप नैवैद्य आप हैं पूजा पूजक पूज्‍य भी हैं।
आप ही श्रोता, आप ही वक्‍ता साई साई साई हैं।। ३ ।।
जल-थल में हैं, नभ में हैं, पवन आप का साक्षी हैं।
प्रकाश है तो रूप आपका ये सब साई साई हैं।। ४ ।।
शिरडी है गोकुल मोहन का मिट्टी का कण कहता हैं ।
साईस्‍पर्शसे पुनीत सब कुछ साई साई साई हैं।। ५ ।।
देह न हूँ मैं –आत्‍मतत्‍व तो निश्चित कालातीत हैं।
सोऽहं सोऽहं नाद अनाहत साई साई साई हैं।। ६ ।।
दृष्‍टी आपकी प्रेममयी है – करुणासे नहलाती है।
हृत्‍स्‍पंदनभी यही सुनाता साई साई साई हैं।। ७ ।।
‘प्‍यार करो रे, सब्र करो रे’ तन का कणकण रटता है।
शिरडी तन हैं मंदिर – आत्‍मा साई साई साई हैं।। ८ ।।
साई साई रटते रटते रोना हँसना बनता है।
ऊँचे स्‍वर में गायक गाता - साई साई साई हैं।। ९ ।।
जन्‍म न गर तो कैसी मृत्‍यु अजर अमर श्रीसाई हैं।
सर्वव्‍यापी, करुणासागर साई साई साई हैं।। १० ।।
साधक कैसे साईजी?  माधव का अवतार है।
हाथ जोडकर हम हैं कहते - साई साई साई हैं।। ११ ।।
साईमूर्ती है मनभावन व्‍यथा दुख बिसराती है।
दवा नाम है सब रोगोंका साई साई साई हैं।। १२ ।।
उदी सुगंधित पुलकित करती ध्‍यान सहजही लगता है।
अंदर शिवजी यही सुनाते साई साई साई हैं।। १३ ।।
हकीम साई, मैया साई, सद्गुरु साई साई है।
परब्रह्म सत्‍स्‍वरूप साई, साई साई साई हैं।। १४ ।।
अपना अपना काम करो गाओ भगवान दयालू है।
जिसे न कोई रखनेवाला उसका साई साई हैं।। १५ ।।
रोटी कपडा, कुटि हो छोटी चाह न मनमें दूजी है।
रहे हाथ ये सेवा में रत साई साई साई हैं।। १६ ।।
शिला नहीं सिंहासन है यह जिसपर साई बैठे हैं।
विश्‍वप्रेम का यही संदेशा साई साई साई हैं।। १७ ।।
श्‍वेत वसन ये साईनाथजी हृन्‍मंदिर में सोहत हैं।
जीवन का तो एक ही गाना साई साई साई हैं।। १८ ।।
पूजाविधि हम नहीं जानते मंत्र न हम को आवत है।
मंत्राक्षर बन बैठे मुँह में साई साई साई हैं।। १९ ।।
साईजीवन लीलासागर इस का जल तो मीठा है।
एक एक स्‍मृति मधुर आचमन साई साई साई हैं।। २० ।।
गद्दीपर बैठे जो साई ॐ स्‍वरूप ही लगते हैं।
श्रद्धा के जो सुमन चढाएं साई साई साई हैं।। २१ ।।
नयनों से झरते हैं ऑंसू वे तेजस्‍वी मोती है।
उन की माला उन्‍हें समर्पित साई साई साई है।। २२ ।।
साई शिव जी जागृत रहकर जीवन शिवमय करते हैं।
श्‍वासों के रुद्राक्ष हैं कहते साई साई साई हैं।। २३ ।।
अशिव जलाकर भस्‍म बना वह उदी हमारी प्‍यारी है।
उस का कण कण नवसंजीवन साई साई साई हैं।। २४ ।।
हृदयही बन्‍सी श्‍वसन नाद है बन्‍सीधर श्रीसाई हैं।
इंद्रिय गौऍं प्रेमांकित सब साई साई साई हैं।। २५ ।।
मेहेरबान हैं साई भक्‍तपर हाथ पकडकर लिखते है।
साई सद्गुरु बडे कृपालु साई साई साई है।। २६ ।।
गीतागायक माधव साई जीवन उन का गीता है।
ज्ञान कर्म और भक्ति सबकुछ साई साई साई हैं।। २७ ।।
रंजन अंजन, दुख का भंजन साई साई साई हैं।
सर्वेश्‍वर, योगीश्‍वर सद्गुरु साई साई साई हैं।। २८ ।।
गोदा गंगा शिरडी काशी श्रीसाई श्रीशंकर है।
गंगा का जल प्‍यास बुझाता साई साई साई हैं।। २९ ।।
जाति न पूछो, पंथ न पूछो यहॉं ज्ञान ही ज्ञान है।
प्रेम का दूजा नाम धरापर साई साई साई हैं।। ३० ।।
नीम वृक्ष के तले बैठकर चिंतन जिस का चलता है।
सुशांत मन से अंदर देखत साई साई साई हैं।। ३१ ।।
बहुत दूरसे आया जोगी निर्जन जिस को प्‍यारा है।
तपाचरणमें समय बिताते साई साई साई हैं।। ३२ ।।
कडी धूप हो या ठंडक हो गिरि के सम जो निश्‍चल है।
अमृत को बरसानेवाला साई साई साई हैं।। ३३ ।।
धरती शय्या नभ ही चादर साई निर्भय सोते हैं।
तन की चिंता जरा न जिस को साई साई साई हैं।। ३४ ।।
जन्‍मत्‍यागी श्रीसाईजी विरक्ति लेकर आये हैं।
तप के बलपर आत्‍मतृप्‍त जो साई साई साई हैं।। ३५ ।।
महाराष्‍ट्र की पावन भूमि संतचरणरज लेती है।
पेडों के पत्‍ते भी गाते साई साई साई हैं।। ३६ ।।
जहॉं रहे श्रीसाईनाथजी धर्मक्षेत्र बन पाया है।
गुरु की महिमा यही गरजती साई साई साई हैं।। ३७ ।।
नाथ पंथ के गंगागीरजी गुण साईके गाते हैं।
शिर्डी विकसित यही कहेगी साई साई साई हैं।। ३८ ।।
जिस स्‍थल बैठे पलट गया वहि घंटि मँगाकर बॉंधी है।
‘द्वारकामाई’ बोले साई – सुवर्णक्षण वह साई है।। ३९ ।।
साई आये यहीं रह गये स्‍वर्ग भूमिपर उतरा है।
अक्षयजागृत धुनी भी गाती साई साई साई हैं।। ४० ।।
घंटा बजकर याद दिलाती यह जमीन संतों की है।
अद्वय अनुभव देनेवाले साई साई साई हैं।। ४१ ।।
मानव ही है जाति धरापर सेवा सच्‍चा धर्म है।
“सत्‍य धर्म का पालन जीवन” साई साई साई हैं।। ४२ ।।
घंटा की ध्‍वनि सोऽहं, सोऽहं अंदर देव जगावत है।
दृष्टि प्रेम की यही दिखाती साई साई साई हैं।। ४३ ।।
यहीं बैठकर साई शिवजी कृपा बॉंटते आये है।
शुद्ध सत्‍त्‍व का सागर साई, साई साई साई हैं।। ४४ ।।
जब साई जी भोजन करते कुत्‍ते रोटी लेते हैं।
कौए लेते कौर हाथ से प्रसाद साई साई हैं।। ४५ ।।
साई हँसकर जूठा खाना प्रेम भाव से खाते हैं।
जिसने देखा मधुर दृश्‍य वह साई साई साई हैं।। ४६ ।।
सारी दुनिया है ईश्‍वर की भेदाभेद क्‍यों मन में है?
जो कोई हमसे बातें करता साई साई साई हैं।। ४७ ।।
किसे विठोबा किसे दाशरथि किसे कन्‍हैया भाता है।
उसी रूप में पाता दर्शन साई साई साई हैं।। ४८ ।।
शिरडी को जब लाते बाबा कृपाहस्‍त ही रखते हैं।
उन्‍नति का तो रहस्‍य सुंदर साई साई साई हैं।। ४९ ।।
सगुण है साई, निर्गुण साई स्थिर अस्थिर सब साई है।
अनादि साई अनंत साई, साई साई साई हैं।। ५० ।।
साईकृपा से साई चिंतन मन में प्रतिपल होता है।
शिरडी पहुँचा मन से भी वह साई साई साई हैं।। ५१ ।।
राम कृष्‍ण हरि जप है प्‍यारा साई स्‍वरूप कहते हैं।
सोऽहं मय जीवन जो करते साई साई साई हैं।। ५२ ।।
भाव चाहिये विशुद्ध कोमल गंगा यमुना ऑंसू हैं।
अंत:स्‍थल की शिरडी में स्थित साई साई साई हैं।। ५३ ।।
अक्‍कलकोट के स्‍वामी साई माणिकप्रभु भी साई है
दासगणू के सद्गुरु साई, साई साई साई हैं।। ५४ ।।
नील गगन में उडती चिडियॉं चहक भी उनकी साई है।
उपवन में जो फूल खिले हैं खुशबू उनकी साई है।। ५५ ।।
भूला भटका आए पथपर साई मॉं की इच्‍छा है।
सरल पंथपर लानेवाले साई साई साई हैं।। ५६ ।।
कभी किसी का दिल न दुखाना साईजी का कहना है।
आत्‍मतत्‍त्‍व, चेतना ईश्‍वरी साई साई साई हैं।। ५७ ।।
साई नाममें जो है शक्ति साईभक्‍तही जानत है।
आत्‍मा का बल नित्‍य बढाता साई साई साई हैं।। ५८ ।।
प्रसाद दे दो हम को साई याचक बनकर आए हैं।
हमें भी दानी जो कर पाता साई साई साई हैं।। ५९ ।।
मस्‍तकपर जो सफेद कपडा मन धवलित करता है।
गौरवर्ण श्रीसाई तन का तन को पुलकित करता है।। ६० ।।
मंदिर साई, मस्जिद साई गिरिजाघर भी साई है।
भक्‍त है, साई प्रभु भी साई, साई साई साई हैं।। ६१ ।।
निर्मल तन हो, निर्मल मन हो यह छोटी सी आशा है।
शरणागत अनुतप्‍त है गाता साई साई साई हैं।। ६२ ।।
ना मॉंगू मैं सोनाचॉंदी शुद्ध ज्ञान की प्‍यास है।
हाथ पीठपर फिरे सर्वदा साई साई साई हैं।। ६३ ।।
यों ही रोता यों ही चिढता, विकार राजा जैसा है।
आधिपत्‍य मिट जाए उसका साई साई साई हैं।। ६४ ।।
साई भाषण, साई चिंतन, साई भोजन लगता है।
साई निद्रा साई जागृति साई साई साई हैं।। ६५ ।।
जन्‍म मरण की चिंता जाए, भक्ति ही जीना लगता है।
चरणभक्तिका प्रार्थी गाता साई साई साई हैं।। ६६ ।।
इन षड्रिपुसे लडते लडते जीव अकेला थकता है।
कृपादान इसलिए मॉंगता साई साई साई हैं।। ६७ ।।
दत्‍तगुरु श्रीसाईनाथजी जिस गाने में भाव है।
गानकला मैं वही मॉंगता साई साई साई हैं।। ६८ ।।
पढना-लिखना साई साई सुनना–कहना साई है।
विचार करना ध्‍यान करना साई साई साई हैं।। ६९ ।।
दुख में साई सुख में साई प्राणोंसे भी सन्निध हैं।
श्‍वास श्‍वास में भासित होता साई साई साई हैं।। ७० ।।
पॉंच घरों की भिक्षा काफी बाकी सब बकवास है।
सुख में दुख में हँसते जीना साई साई साई हैं।। ७१ ।।
जहॉं बैठॅूं वहॉं लगे समाधि और नहीं कुछ मॉंगत है।
यह तन्‍मयता, मन की शुचिता साई साई साई हैं।। ७२ ।।
श्रीनारायण जय नारायण साई साई साई हैं।
वासुदेव हरि । पांडुरंग हरि। साई साई साई हैं।। ७३ ।।
साई नाम का अमृत पीकर कोमलता वाणी में है।
लोहे का सोना जिसने बनाया साई साई साई हैं।। ७४ ।।
मीरा मधुरा मनमें गावत साईकृष्‍ण बलिहारी है।
राधाधरमधुमिलिंद साई, साई साई साई हैं।। ७५ ।।
इस फकीर को देख अमीरी पदस्‍पर्श को झुकती है।
निर्मोही श्‍वेतांबर साई, साई साई साई हैं।। ७६ ।।
देहदु:ख को दूर भगावत करुणाघन श्रीसाई है।
आत्‍मसौख्‍य का दूध पिलाती मैया साई साई हैं।। ७७ ।।
साई मुकुंद भक्‍त गोपियॉं शिरडी तो वृंदावन है।
श्रद्धा की मुरली है गाती साई साई साई हैं।। ७८ ।।
राम रघुराई श्री साई कृष्‍ण कन्‍हैया साई है।
झनननन बजकर झॉंजभी गाती साई साई साई हैं।। ७९ ।।
मधुर मधुर बजकर शहनाई साई गुणको गाती है।
झूम झूम कर रागिणि गावत साई साई साई हैं।। ८० ।।
श्रीपाद श्रीवल्‍लभ यतिवर साई साई साई हैं।
नृसिंह सरस्‍वति सद्गुरु साई, साई साई साई हैं।। ८१ ।।
कुंडलिनी जगदंबा साई दशा उन्‍मनी साई है
राधा का पागलपन साई, साई साई साई हैं।। ८२ ।।
मैं हूँ साई, तू है साई, सब कुछ साई साई है।
विश्‍व व्‍यापकर शेष रहे वह साई साई साई हैं।। ८३ ।।
साई मैया हमें खिलाती तृप्‍तभाव से देखत है।
हमें हँसाकर आप है हँसती साई साई साई हैं।। ८४ ।।
कृष्‍णनाथ वह, रामनाथ वह, दत्‍तनाथ वह साई है।
आदिनाथ वह, ज्ञाननाथ वह, साई साई साई हैं।। ८५ ।।
साई शशि तो हम चकोर हैं दर्शन को तरसाते हैं।
अरुणोदय जो हुआ हृदय में साई साई साई हैं।। ८६ ।।
अंगुलि छूते सिहर है उठता माला का मणि साई है।
ऑंसू साई, स्‍वेद भी साई, अलख निरंजन साई है।। ८७ ।।
सोऽहं हंसारूढ है साई, गौरी शंकर साई है।
भवबंधमोचक साईनाथजी साई साई साई हैं।। ८८ ।।
लक्ष्‍मी साई, दुर्गा साई, सरस्‍वती भी साई है।
नर भी साई नारी साई, साई साई साई हैं।। ८९ ।।
ध्‍यान है साई, गान है साई सूर-ताल-लय साई है।
गति है साई, स्थिरता साई, साई साई साई हैं।। ९० ।।
साई रक्षा करो हमारी, सॉंस सॉंस में साई है।
जोर जोर से बजती ताली साई साई साई हैं।। ९१ ।।
मच्छिंद्र साई, गोरक्ष साई गहिनी साई साई है।
शिव है साई शक्ति साई साई साई साई हैं।। ९२ ।।
आदि है साई, अंत है साई मध्‍य भी साई साई है।
अनादि साई, अनंत साई साई साई साई हैं।। ९३ ।।
विवेक साई, संयम साई, विरक्ति साई साई है।
दयाक्षमाधृति शांति साई, साई साई साई हैं।। ९४ ।।
जो कोई मिलता साई लगता – भूतमात्र में साई है।
भेदबुद्धिको त्‍यज देनेपर साई साई साई हैं।। ९५ ।।
साईचिंतन है दुखभंजन मनका रंजन होता है।
ज्ञान का अंजन यह दिखलाता साई साई साई हैं।। ९६ ।।
इसी देह में साई सद्गुरु मोक्षस्थितिभी देते है।
अंगुलि धरकर धीरे चलते साई साई साई हैं।। ९७ ।।
दीप दीप में पानी भर कर साई ज्‍योत जलाते हैं।
तेजालंकृत द्वारकामाई साई साई साई हैं।। ९८ ।।
सीमापर आटा जो डाला पीडा कोसों भागी है।
भ‍क्‍तोंका सच्‍चा रखवाला साई साई साई हैं।। ९९ ।।
कुत्‍ते को भी रोटी खिलायी तृप्‍त साईजी होते हैं।
आत्‍मा सबका एक ही है वह साई साई साई हैं।। १०० ।।
प्रेम दया समता है साई, श्रद्धा सबुरी साई है।
कॉंटों में खिलनेवाला वह फूल भी साई साई है।। १०१ ।।
समाधिसुख देते हैं साई कायापालट करते है।
भाव देखकर प्रसन्‍न होते साई साई साई हैं।। १०२ ।।
संतस्‍पर्शसे पावनभूमि शिरडी काशी लगती है।
उपासनी की सद्गुरुमूर्ति साई साई साई हैं।। १०३ ।।
तव चरणों पर रखकर माथा भक्‍त प्रार्थना करता है।
एकरूप सब संत हैं होते साई साई साई हैं।। १०४ ।।
माणिकप्रभु , शिरडी के साई, स्‍वामी समर्थ एकही है।
दत्‍तराजसम त्रिमूर्ति लगती साई साई साई हैं।। १०५ ।।
कल्‍याण निष्‍ठा का ही फल है निष्‍ठा प्रभु की देन है।
श्रद्धासे हरिको भजता वह साई साई साई हैं।। १०६ ।।
साई मेरी पूर्ण कामना हुई आपकी किरपा है।
इसी स्‍तवन में देंगे दर्शन, साई साई साई हैं।। १०७ ।।
गायक श्रीराम श्रोता श्रीराम साई भी श्रीराम है।
आत्‍मनिवेदन हुआ कृपासे साई साई साई हैं।। १०८ ।।

शिरडीनिवासी श्रीसाईनाथ महाराज की जय

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले

लेखनकाल २६.३.१९७६ से ३१.३.१९७६

Thursday, June 25, 2020

प्रपंचात परमार्थ पहा!

सुख देत घेत तू जगत राहा
प्रपंचात परमार्थ पहा!ध्रु.

आसक्ती मूळच दुःखाचे
वैराग्याने उपटायाचे
कर्मफळाची नको स्पृहा!१

मायतात रखुमाई विठ्ठल
श्रद्धा राहो अशीच निश्चल
पुंडलीक होऊन पहा!२

भोगाचे सुख भंगुर आहे
त्यागाचे सुख अनुपम आहे
सोसुन कळ तू हसत रहा!३

सगळे देणे भगवंताचे
अविरत वितरण करावयाचे
करुनि अकर्ता होय पहा!४

समर्पणाची साधच संधी
काय करिल मग आधिव्याधी?
आत्मचिंतनी दंग राहा!५

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवलेसुख देत घेत तू जगत राहा
प्रपंचात परमार्थ पहा!ध्रु.

आसक्ती मूळच दुःखाचे
वैराग्याने उपटायाचे
कर्मफळाची नको स्पृहा!१

मायतात रखुमाई विठ्ठल
श्रद्धा राहो अशीच निश्चल
पुंडलीक होऊन पहा!२

भोगाचे सुख भंगुर आहे
त्यागाचे सुख अनुपम आहे
सोसुन कळ तू हसत रहा!३

सगळे देणे भगवंताचे
अविरत वितरण करावयाचे
करुनि अकर्ता होय पहा!४

समर्पणाची साधच संधी
काय करिल मग आधिव्याधी?
आत्मचिंतनी दंग राहा!५

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

Sunday, June 21, 2020

पितृदेव हे त्रिवार वंदन!



पितृदेव हे त्रिवार वंदन! त्रिवार वंदन!!
त्रिवार वंदन!!!
झिजला ऐसे जीवनभर की तुम्हां पाहुनी लाजे चंदन!ध्रु.

कृतज्ञतेने मन भारावे
काय लिहावे? कैसे गावे?
तात आपले पुत्र नि कन्या -
हृदयी जपती मधुर आठवण!१

कठोर प्रेमा! अबोल प्रेमा!
डोळस प्रेमा! अमोल प्रेमा!
डोकावा ना एकच क्षणभर -
हृदयच झाले निर्मळ दर्पण!२

अपुल्या ठायी देव प्रकटला
कौतुक-संयम संगम झाला
निर्गुण झाला त्याच क्षणी हो
जाणवलेले गोड जवळपण! ३

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
१०.३.१९७५ माघ वद्य १३
सारंग, केरवा (संथ वाहते)

जीवनात या श्रीराम भेटे करता व्यायाम!

जीवनात या श्रीराम
भेटे करता व्यायाम! ध्रु.

देहाची हालचाल व्हावी
घामाने काया भिजवावी
आत राम घेई नाम!१

जन्मभराची साथ धरा
मारुतिराया स्मरा स्मरा
सुखवी मनास व्यायाम!२

जळतरणाने आनंद
सूर्यनमस्कारे मोद
इष्ट घडतसे परिणाम!३

शरीर रथ सारथी तुम्ही
अर्जुन ते श्रीकृष्ण तुम्ही
सम अध्यात्म नि व्यायाम!४

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

Saturday, June 20, 2020

कुठवर पाहू वाट?


आशेच्या या प्रशांत दीपीं
मिणमिण करिते वात
तुझी मी कुठवर पाहू वाट? ध्रु.

आजवरी मी स्वप्नमहाली
अनेक चित्रें उरि बाळगली
सत्य जगाची जाणिव नुरली
तुझ्यासाठी मी निशिदिनी झुरले - हाच काय अपराध?१

सुर्याविण कधि कमल फुले का?
सूत्राविण कधि बने मालिका?
स्नेहाविण कुणी ज्योति पाहि का?
तुझ्याविना मज अभागिनीला कोण असे जगतांत?२

असशी कोठे मला न माहित
रात्रंदिन मी तुलाच चिंतित
भैरवि बसते आज अलापित
ऐस कुठेही मला न चिंता राही तूच सुखात!३

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
२२.५.१९५५

Thursday, June 18, 2020

बळी न द्यावे उगा जिवा....

तणाव आहे आत्मघातकी
बळी न द्यावे उगा जिवा
हालाहलहि पचवु शके हो
भजा भजा त्या सदाशिवा

नामाने पाषाणहि तरले
ढिले करा या देहाला
विसरा झाले-गेलेले
करा नियंत्रित श्वासाला

हे खावे ते प्यावे वाटे
बळेच ते दुरि सारावे
नच टाळावे परिश्रमाते
शरीर घामे भिजु द्यावे

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

मागणे श्रीगुरुदत्ताला

श्रीगुरुदत्ता चरणशरण मी अभयदान द्यावे आता
कमंडलूतिल तीर्थजलाने शांत करावे मम चित्ता!

तुम्हांस नमिता सरती चिंता माझे मानस गहिवरते
सद्गुरु सद्गुरु नाम अनावर सद्भावाला ये भरते!

घर सोडुनिया जा एकांती आसनावरी बैस जरा
मी नच कोणी घे घे जाणुनि अभिमानाचा कर निचरा!

काखे झोळी मनी दिवाळी, मुद्रेवरती प्रसन्नता
तो जाणतसे चराचरावर दत्तात्रेयाची सत्ता!

निःस्पृह अगदी आत्मतृप्त जो ऐसा माझा गुरुदेव
अंतरि वसतो मज सावरतो परमदयाळू गुरुदेव!

भस्म कपाळी भया निवारी नितसंचारी मज करते
असुनि नसावे नसुनि असावे ऐसी शिकवण ते देते!

अनसूयेचा सुपुत्र झाला ऐसा माझा गुरुदत्त
त्रिगुणातीतच अत्रितनय हा विश्वनिकेतन अवधूत!

द्वंद्वातीतच  सद्गुरु हृदयी मला सांगतो धीर धरी
श्रद्धा सबुरी या वल्ह्यांनी भवसागर तू पार करी!

जो अविकारी तो अधिकारी प्रपंच त्याचा परमार्थ
विश्वसखा तो कृपांकित खरा तया साधला निजस्वार्थ!

गुरुवारीच्या भल्या पहाटे जागवले मज बैसवले
श्रीरामाचे भाग्य उदेले दत्ताने अपुला म्हटले!

।।श्रीगुरुदेवदत्त।।

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

Wednesday, June 17, 2020

श्रांत जिवा तू घे विश्रांती..


निष्‍ठावंत सुधारक आगरकर – फर्ग्‍युसन चे प्रिन्सिपॉल झाले – त्‍यांच्‍याच देखत नवी इमारत उभी झाली. त्‍यांना टिळकांची आठवण झाली. उन्‍हाळ्याच्‍या सुट्टीत त्‍यांची प्रकृती अधिकच बिघडली. अंतकाळ जवळ आला या विचाराने त्‍यांनी टिळकांच्‍या भेटीचा ध्‍यास घेतला. टिळकही हाक पोचताच धावत आले – मित्राचा हात हातात घेतला आणि जणू टिळकांचे प्रेमामृताने ओथंबलेले डोळेच बोलू लागले
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मनास तुझिया लाभो शांती
श्रांत जिवा घे तू विश्रांती! ध्रु

परिस्थितीवर विजय मिळवशी
स्‍वार्थत्‍यागे जना दिपविशी
संकटांस तू मुळी न गणिसी
ताण कसा सोसणार कुडी ती ! १ 

हाती ते सन्मित्रा तव कर
उजळू दे तव मुखी प्रभाकर
खळाळु दे हर्षाचा निर्झर
कृतार्थ अश्रू तव जणु मोती ! २

शपथ सांगतो तुजला मित्रा
मैत्रीते नच गिळे तमिस्‍त्रा
पवित्रता जी तीर्थक्षेत्रा
तीच अनुभवी तुझ्या संगती ! ३

बुद्धिवादी तू कैसा वेडा
मला भासशी पूर्ण भाबडा
सरळ मनी राहीत ना तेढा
कर्तव्‍यास्‍तव साठव शक्‍ती ! ४

आज लाभला पूर्वजिव्‍हाळा
मधुरस्‍मृती होता क्षणि गोळा
मळा वसंती पुनरपि फुलला
संजीवक ठरण्‍यास्‍तव प्रीती ! ५

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले
३१.१.१९६८

विचारकलहा भिता कशाला?


सुधारक आणि केसरी यांच्‍यात अनेक प्रसंगी संघर्ष झडला – हल्‍ले प्रतिहल्‍ले झाले – आगरकर केवळ सुधारणावादी नव्‍हते – स्‍वराज्‍यवादीही होते तसेच टिळकांना सुधारणांचे वावडे नव्‍हते. किंबहुना संपूर्ण आगरकर त्‍यांच्‍या अनुयायांनाही पचनी पडणे कठिणच होते.  एकेकाळच्‍या जिवश्‍च कंठश्‍च मित्रांची भांडणे पाहून काही सामान्‍य जन दु:खी कष्‍टी होत त्‍यांना उद्देशून आगरकर म्‍हणतात

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विचारकलहा भिता कशाला?  विचारकलहा भिता !
आत्‍मप‍रीक्षण खुल्‍या करतसे प्रगतीच्‍या वाटा ! ध्रु.

वाग्‍युद्धी जरी प्रहार झाले
फुलांपरी आम्‍हीच झेलले
तेजस्विनि ठिणग्‍या चमचमती चकमक की झडता १

बुद्धीची लावाच कसोटी
विकसित होवो व्‍यक्‍ती व्‍यक्‍ती
तर्क, पुरावे भूमिकेस या देती बळकटि अता २

रुग्‍णालागी पथ्‍य हवे
कटु हितकर नित वचन हवे
समाजचौकट जुनी फेकु करू विरोध लोकमता ३ 

कर्तव्‍यावर ठेवुनि निष्‍ठा
स्‍वजनांशीही लढू तत्त्वत:
मित्र तरीही न वैरि न कोणी वृथाच घाबरता ४

संघर्षातुन फुलते जीवन
देत चिकित्‍सा नवसंजीवन
स्‍वराज्‍य मिळण्‍यापूर्वी आणू रा‍बविण्‍या पात्रता ५

रुढींचे तोडण्‍यास बंधन
खुशाल सत्ता करो नियंत्रण
समाजोन्‍नती होता घडते ध्‍येयांची पूर्तता ६

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले
३०.१.१९६८  ‍

Saturday, June 13, 2020

तात्या, इथे कसा तू?

कळवळले मन बोलुनि उठले-
तात्या इथे कसा तू? ध्रु.

दृष्टिभेट तर क्षणभर झाली
मने मनांशी बोलुनि गेली
बाबा लावुनि हात कपाळी इतुके उच्चारी -
तात्या इथे कसा तू? १

प्रश्न भेदतो अंतःकरणा
काय वाटले, कुणा कल्पना
शब्दांची सुरि धार चावरी ऐसी मर्मच्छेदी
तात्या इथे कसा तू? २

बाबा पाठी विजनी आलो
बंधू दिसता भरुनि पावलो
बाबाच्या शिरि निर्दय दंडा - काय नियतिचा हेतू?
तात्या इथे कसा तू? ३

कळवळला तो मला पाहुनी
मीही गेलो पुरा वाहुनी
मातृभूमि जणु बंधुमुखातुनि मजसी हे विचारी
तात्या इथे कसा तू? ४

कुठे कुणाचे नाते नसते
वेडे मन उर बडवुनि घेते
विफल यत्न मम स्थिरावण्याचा एक मानसी किंतू
तात्या इथे कसा तू? ५

मज अवतारी पुरुष मानले
आज तयाचे स्वप्न भंगले
नागिण डसली अग्रज चित्ता एकच प्रश्न छळी
तात्या इथे कसा तू? ६

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

Tuesday, June 9, 2020

नाम घेत तुज जगायचे..

नाम घेत तुज जगायचे
अनुभव सांगत, विद्या वितरत
रोगा विसरत जगायचे!ध्रु.

तुझी वेदना देहापुरती
तू तर देह न सुजन सांगती
हासत सगळे सहायचे!१

रडणे कधीहि शोभत नाही
झुकणे शूरा ठाउक नाही
भानहि हरपुन लढायचे!२

बोलण्यात उत्साह हवा
कामामध्ये जोर हवा
रडायचे ना झुरायचे!३

औषध ते पूरक अन्नाला
सहा रसांच्या घे स्वादाला
मर्यादित जेवायाचे!४

आगमनाची जशी तयारी
निघावयाची हवी तयारी
मरणाला ना डरायचे!५

पुनर्भेटिची खात्री नाही
शुद्ध मनाची अपणा ग्वाही
अनंतात मिसळायाचे!६

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
३.७.९६ (पहिली चार कडवी आणि १६.७.९६ (शेवटची दोन कडवी)

Friday, June 5, 2020

कबीर..


कबीर म्हणतो माझा ईश्वर
माझा ईश्वर 'स्वामी' आहे
दुजा न कोणी देहातच तो
विदेहीपणे वसला आहे!

तो तर माझा एक एकला
रंग रूप ना जनात रमला
भार सर्वथा टाकुनि त्यावर
कबीर नामी रमला आहे!

उदार दाता ऐसा नाही
अंतर्यामी बसून राही
जे जे जवळी सगळे त्याचे
जाण कबीरा सदैव आहे!

मन जर माझे त्यांच्यामध्ये
त्याचे मनही माझ्यामध्ये
ऐसे समरस होता यावे
तळमळ तळमळ होते आहे!

फकीरीत जे नाम स्फुरते
अमीरीत ते नच आठवते
नामरसाचा प्याला प्राशुन
कबीर अंतरि रमला आहे!

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
१२.१२.१९८९

Thursday, June 4, 2020

स्वराज्य हे जन्मले...

स्वराज्य हे जन्मले! शिवाला सिंहासन लाभले!
स्वर्गसुख रायगडी पोचले ! ध्रु.

उजळति ज्योती, घुमत चौघडा
प्राजक्ताचा सुगंधी सडा
मनी दरवळे धुंद केवडा
शिवा मस्तकी छत्र पाहता उद्यापन जाहले ! १

स्वराज्यात आणविल्या सरिता
जणू इच्छिती अपुलि मुक्तता
मनोमनी शिव वचनि गुंतता
तुषार त्या साती गंगांचे हर्षभरे हासले ! २

वंदन करण्या शिवबा झुकला
कर थरथरता पृष्ठी फिरला
वात्सल्याचा गंध आगळा
आशीर्वच मातेचे पावन तीर्थोदक वाटले ! ३

पदस्पर्श कौशल्ये टाळुन
श्रीशिव भूषवि ते सिंहासन
सुवर्ण अधिकचि गेले उजळुन
शिंगे, कर्णे, ताशे, सनया नाद हि कल्लोळले ! ४

दणदणाट  तोफांचा झाला
बधीरता ये झणि शत्रूला
फिरंगाहि अंतरि बावरला
सौभाग्याचा असा सोहळा शिवमंगल जाहले ! ५

सुलतानाची मिरास सरली
इच्छांची परिपूर्ती झाली
धर्माते जगि लाभे वाली
चार पातशाह्यांते हरवुन सिंहासन स्थापिले ! ६

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

त्रिवार माझा मुजरा....

छत्रपतींच्या गादीला या त्रिवार माझा मुजरा!
त्रिवार माझा मुजरा! ध्रु.

मुक्ति लाभता येथे आलो
शिवस्मृतीने पावन झालो
शक्तिकेंद्र हे प्रभावशाली प्रत्यय आला पुरा!१

स्वराज्यसंस्थापक जो होता
गोब्राह्मणप्रतिपालक नेता
छत्रपतींच्या आशीर्वचना अत्युत्सुक मी खरा!२

राज्य हिंदवी जये स्थापिले
बादशहाला खडे चारिले
त्या आदर्शा हृदी बिंबण्या नमिले मी नरवरा!३

हिंदुध्वज प्राणांहुनि प्यारा
उधाण आणित मनःसागरा
वंदन करण्या ध्वजराजासी खाली झुकल्या नजरा!४

तलवारीचे सुतीक्ष्ण पाते
शत्रुमनी थरकाप उडविते
युयुत्सु मन हे नम्र होउनी वंदित गुणगंभीरा!५

श्रीशिवराया साक्ष ठेवुनी
पाउल ठेवी राजकारणी
शक्ती युक्ती धृति नीतींनी वरिले वीरवरा!६

सर्वप्रथम कर्तव्य हेच ते
आदरभावे मस्तक लवते
नसानसातुनि चैतन्याचा खळखळताहे झरा!७

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

Tuesday, June 2, 2020

मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती....

समर्थकृपा तू जरी इच्छितोसी
मना माझिया ध्यास तू का न घेशी?
तुझे सद्गुरू यावया नित्य भेटी
मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती १

तुझी साधना नित्य नेमे घडू दे
तुझी वासना रामरूपी विरू दे
खरा जीवनी राम येण्याच साठी
मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती २

तुझा मीपणा सर्व दुःखास मूळ
तुझा मीपणा सर्व वादास मूळ
जुने ठेवणे ते पुन्हा लाभण्यासी
मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती ३

बरा निश्चयो शाश्वताचा करावा
मना मृत्यु याच्याचसाठी स्मरावा
तुला लाभण्या नित्य यत्नार्थ स्फूर्ती
मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती ४

सुखानंद आनंद भेदे उडाला
खरा भक्त आनंदडोही बुडाला
मना सज्जना सद्गुरू सांगताती
मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती ५

समर्थाचिया सेवके ना कुढावे
समर्थाचिया सेवके ना रडावे
पुढे भक्तिमार्गे सुखे चालण्यासी
मनोबोध गावा प्रभाती प्रभाती ६

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
१०.१.१९८६