साई, हूँ मैं आपका, आप हमारे साई है।
जहॉं देखूँ तहॉं साई है, साई साई साई हैं।। १ ।।
आप हमारे रखवाले, कर्ता, धर्ता, भर्ता हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, श्रीमहेशजी साई साई साई हैं।। २ ।।
धूप दीप नैवैद्य आप हैं पूजा पूजक पूज्य भी हैं।
आप ही श्रोता, आप ही वक्ता साई साई साई हैं।। ३ ।।
जल-थल में हैं, नभ में हैं, पवन आप का साक्षी हैं।
प्रकाश है तो रूप आपका ये सब साई साई हैं।। ४ ।।
शिरडी है गोकुल मोहन का मिट्टी का कण कहता हैं ।
साईस्पर्शसे पुनीत सब कुछ साई साई साई हैं।। ५ ।।
देह न हूँ मैं –आत्मतत्व तो निश्चित कालातीत हैं।
सोऽहं सोऽहं नाद अनाहत साई साई साई हैं।। ६ ।।
दृष्टी आपकी प्रेममयी है – करुणासे नहलाती है।
हृत्स्पंदनभी यही सुनाता साई साई साई हैं।। ७ ।।
‘प्यार करो रे, सब्र करो रे’ तन का कणकण रटता है।
शिरडी तन हैं मंदिर – आत्मा साई साई साई हैं।। ८ ।।
साई साई रटते रटते रोना हँसना बनता है।
ऊँचे स्वर में गायक गाता - साई साई साई हैं।। ९ ।।
जन्म न गर तो कैसी मृत्यु अजर अमर श्रीसाई हैं।
सर्वव्यापी, करुणासागर साई साई साई हैं।। १० ।।
साधक कैसे साईजी? माधव का अवतार है।
हाथ जोडकर हम हैं कहते - साई साई साई हैं।। ११ ।।
साईमूर्ती है मनभावन व्यथा दुख बिसराती है।
दवा नाम है सब रोगोंका साई साई साई हैं।। १२ ।।
उदी सुगंधित पुलकित करती ध्यान सहजही लगता है।
अंदर शिवजी यही सुनाते साई साई साई हैं।। १३ ।।
हकीम साई, मैया साई, सद्गुरु साई साई है।
परब्रह्म सत्स्वरूप साई, साई साई साई हैं।। १४ ।।
अपना अपना काम करो गाओ भगवान दयालू है।
जिसे न कोई रखनेवाला उसका साई साई हैं।। १५ ।।
रोटी कपडा, कुटि हो छोटी चाह न मनमें दूजी है।
रहे हाथ ये सेवा में रत साई साई साई हैं।। १६ ।।
शिला नहीं सिंहासन है यह जिसपर साई बैठे हैं।
विश्वप्रेम का यही संदेशा साई साई साई हैं।। १७ ।।
श्वेत वसन ये साईनाथजी हृन्मंदिर में सोहत हैं।
जीवन का तो एक ही गाना साई साई साई हैं।। १८ ।।
पूजाविधि हम नहीं जानते मंत्र न हम को आवत है।
मंत्राक्षर बन बैठे मुँह में साई साई साई हैं।। १९ ।।
साईजीवन लीलासागर इस का जल तो मीठा है।
एक एक स्मृति मधुर आचमन साई साई साई हैं।। २० ।।
गद्दीपर बैठे जो साई ॐ स्वरूप ही लगते हैं।
श्रद्धा के जो सुमन चढाएं साई साई साई हैं।। २१ ।।
नयनों से झरते हैं ऑंसू वे तेजस्वी मोती है।
उन की माला उन्हें समर्पित साई साई साई है।। २२ ।।
साई शिव जी जागृत रहकर जीवन शिवमय करते हैं।
श्वासों के रुद्राक्ष हैं कहते साई साई साई हैं।। २३ ।।
अशिव जलाकर भस्म बना वह उदी हमारी प्यारी है।
उस का कण कण नवसंजीवन साई साई साई हैं।। २४ ।।
हृदयही बन्सी श्वसन नाद है बन्सीधर श्रीसाई हैं।
इंद्रिय गौऍं प्रेमांकित सब साई साई साई हैं।। २५ ।।
मेहेरबान हैं साई भक्तपर हाथ पकडकर लिखते है।
साई सद्गुरु बडे कृपालु साई साई साई है।। २६ ।।
गीतागायक माधव साई जीवन उन का गीता है।
ज्ञान कर्म और भक्ति सबकुछ साई साई साई हैं।। २७ ।।
रंजन अंजन, दुख का भंजन साई साई साई हैं।
सर्वेश्वर, योगीश्वर सद्गुरु साई साई साई हैं।। २८ ।।
गोदा गंगा शिरडी काशी श्रीसाई श्रीशंकर है।
गंगा का जल प्यास बुझाता साई साई साई हैं।। २९ ।।
जाति न पूछो, पंथ न पूछो यहॉं ज्ञान ही ज्ञान है।
प्रेम का दूजा नाम धरापर साई साई साई हैं।। ३० ।।
नीम वृक्ष के तले बैठकर चिंतन जिस का चलता है।
सुशांत मन से अंदर देखत साई साई साई हैं।। ३१ ।।
बहुत दूरसे आया जोगी निर्जन जिस को प्यारा है।
तपाचरणमें समय बिताते साई साई साई हैं।। ३२ ।।
कडी धूप हो या ठंडक हो गिरि के सम जो निश्चल है।
अमृत को बरसानेवाला साई साई साई हैं।। ३३ ।।
धरती शय्या नभ ही चादर साई निर्भय सोते हैं।
तन की चिंता जरा न जिस को साई साई साई हैं।। ३४ ।।
जन्मत्यागी श्रीसाईजी विरक्ति लेकर आये हैं।
तप के बलपर आत्मतृप्त जो साई साई साई हैं।। ३५ ।।
महाराष्ट्र की पावन भूमि संतचरणरज लेती है।
पेडों के पत्ते भी गाते साई साई साई हैं।। ३६ ।।
जहॉं रहे श्रीसाईनाथजी धर्मक्षेत्र बन पाया है।
गुरु की महिमा यही गरजती साई साई साई हैं।। ३७ ।।
नाथ पंथ के गंगागीरजी गुण साईके गाते हैं।
शिर्डी विकसित यही कहेगी साई साई साई हैं।। ३८ ।।
जिस स्थल बैठे पलट गया वहि घंटि मँगाकर बॉंधी है।
‘द्वारकामाई’ बोले साई – सुवर्णक्षण वह साई है।। ३९ ।।
साई आये यहीं रह गये स्वर्ग भूमिपर उतरा है।
अक्षयजागृत धुनी भी गाती साई साई साई हैं।। ४० ।।
घंटा बजकर याद दिलाती यह जमीन संतों की है।
अद्वय अनुभव देनेवाले साई साई साई हैं।। ४१ ।।
मानव ही है जाति धरापर सेवा सच्चा धर्म है।
“सत्य धर्म का पालन जीवन” साई साई साई हैं।। ४२ ।।
घंटा की ध्वनि सोऽहं, सोऽहं अंदर देव जगावत है।
दृष्टि प्रेम की यही दिखाती साई साई साई हैं।। ४३ ।।
यहीं बैठकर साई शिवजी कृपा बॉंटते आये है।
शुद्ध सत्त्व का सागर साई, साई साई साई हैं।। ४४ ।।
जब साई जी भोजन करते कुत्ते रोटी लेते हैं।
कौए लेते कौर हाथ से प्रसाद साई साई हैं।। ४५ ।।
साई हँसकर जूठा खाना प्रेम भाव से खाते हैं।
जिसने देखा मधुर दृश्य वह साई साई साई हैं।। ४६ ।।
सारी दुनिया है ईश्वर की भेदाभेद क्यों मन में है?
जो कोई हमसे बातें करता साई साई साई हैं।। ४७ ।।
किसे विठोबा किसे दाशरथि किसे कन्हैया भाता है।
उसी रूप में पाता दर्शन साई साई साई हैं।। ४८ ।।
शिरडी को जब लाते बाबा कृपाहस्त ही रखते हैं।
उन्नति का तो रहस्य सुंदर साई साई साई हैं।। ४९ ।।
सगुण है साई, निर्गुण साई स्थिर अस्थिर सब साई है।
अनादि साई अनंत साई, साई साई साई हैं।। ५० ।।
साईकृपा से साई चिंतन मन में प्रतिपल होता है।
शिरडी पहुँचा मन से भी वह साई साई साई हैं।। ५१ ।।
राम कृष्ण हरि जप है प्यारा साई स्वरूप कहते हैं।
सोऽहं मय जीवन जो करते साई साई साई हैं।। ५२ ।।
भाव चाहिये विशुद्ध कोमल गंगा यमुना ऑंसू हैं।
अंत:स्थल की शिरडी में स्थित साई साई साई हैं।। ५३ ।।
अक्कलकोट के स्वामी साई माणिकप्रभु भी साई है
दासगणू के सद्गुरु साई, साई साई साई हैं।। ५४ ।।
नील गगन में उडती चिडियॉं चहक भी उनकी साई है।
उपवन में जो फूल खिले हैं खुशबू उनकी साई है।। ५५ ।।
भूला भटका आए पथपर साई मॉं की इच्छा है।
सरल पंथपर लानेवाले साई साई साई हैं।। ५६ ।।
कभी किसी का दिल न दुखाना साईजी का कहना है।
आत्मतत्त्व, चेतना ईश्वरी साई साई साई हैं।। ५७ ।।
साई नाममें जो है शक्ति साईभक्तही जानत है।
आत्मा का बल नित्य बढाता साई साई साई हैं।। ५८ ।।
प्रसाद दे दो हम को साई याचक बनकर आए हैं।
हमें भी दानी जो कर पाता साई साई साई हैं।। ५९ ।।
मस्तकपर जो सफेद कपडा मन धवलित करता है।
गौरवर्ण श्रीसाई तन का तन को पुलकित करता है।। ६० ।।
मंदिर साई, मस्जिद साई गिरिजाघर भी साई है।
भक्त है, साई प्रभु भी साई, साई साई साई हैं।। ६१ ।।
निर्मल तन हो, निर्मल मन हो यह छोटी सी आशा है।
शरणागत अनुतप्त है गाता साई साई साई हैं।। ६२ ।।
ना मॉंगू मैं सोनाचॉंदी शुद्ध ज्ञान की प्यास है।
हाथ पीठपर फिरे सर्वदा साई साई साई हैं।। ६३ ।।
यों ही रोता यों ही चिढता, विकार राजा जैसा है।
आधिपत्य मिट जाए उसका साई साई साई हैं।। ६४ ।।
साई भाषण, साई चिंतन, साई भोजन लगता है।
साई निद्रा साई जागृति साई साई साई हैं।। ६५ ।।
जन्म मरण की चिंता जाए, भक्ति ही जीना लगता है।
चरणभक्तिका प्रार्थी गाता साई साई साई हैं।। ६६ ।।
इन षड्रिपुसे लडते लडते जीव अकेला थकता है।
कृपादान इसलिए मॉंगता साई साई साई हैं।। ६७ ।।
दत्तगुरु श्रीसाईनाथजी जिस गाने में भाव है।
गानकला मैं वही मॉंगता साई साई साई हैं।। ६८ ।।
पढना-लिखना साई साई सुनना–कहना साई है।
विचार करना ध्यान करना साई साई साई हैं।। ६९ ।।
दुख में साई सुख में साई प्राणोंसे भी सन्निध हैं।
श्वास श्वास में भासित होता साई साई साई हैं।। ७० ।।
पॉंच घरों की भिक्षा काफी बाकी सब बकवास है।
सुख में दुख में हँसते जीना साई साई साई हैं।। ७१ ।।
जहॉं बैठॅूं वहॉं लगे समाधि और नहीं कुछ मॉंगत है।
यह तन्मयता, मन की शुचिता साई साई साई हैं।। ७२ ।।
श्रीनारायण जय नारायण साई साई साई हैं।
वासुदेव हरि । पांडुरंग हरि। साई साई साई हैं।। ७३ ।।
साई नाम का अमृत पीकर कोमलता वाणी में है।
लोहे का सोना जिसने बनाया साई साई साई हैं।। ७४ ।।
मीरा मधुरा मनमें गावत साईकृष्ण बलिहारी है।
राधाधरमधुमिलिंद साई, साई साई साई हैं।। ७५ ।।
इस फकीर को देख अमीरी पदस्पर्श को झुकती है।
निर्मोही श्वेतांबर साई, साई साई साई हैं।। ७६ ।।
देहदु:ख को दूर भगावत करुणाघन श्रीसाई है।
आत्मसौख्य का दूध पिलाती मैया साई साई हैं।। ७७ ।।
साई मुकुंद भक्त गोपियॉं शिरडी तो वृंदावन है।
श्रद्धा की मुरली है गाती साई साई साई हैं।। ७८ ।।
राम रघुराई श्री साई कृष्ण कन्हैया साई है।
झनननन बजकर झॉंजभी गाती साई साई साई हैं।। ७९ ।।
मधुर मधुर बजकर शहनाई साई गुणको गाती है।
झूम झूम कर रागिणि गावत साई साई साई हैं।। ८० ।।
श्रीपाद श्रीवल्लभ यतिवर साई साई साई हैं।
नृसिंह सरस्वति सद्गुरु साई, साई साई साई हैं।। ८१ ।।
कुंडलिनी जगदंबा साई दशा उन्मनी साई है
राधा का पागलपन साई, साई साई साई हैं।। ८२ ।।
मैं हूँ साई, तू है साई, सब कुछ साई साई है।
विश्व व्यापकर शेष रहे वह साई साई साई हैं।। ८३ ।।
साई मैया हमें खिलाती तृप्तभाव से देखत है।
हमें हँसाकर आप है हँसती साई साई साई हैं।। ८४ ।।
कृष्णनाथ वह, रामनाथ वह, दत्तनाथ वह साई है।
आदिनाथ वह, ज्ञाननाथ वह, साई साई साई हैं।। ८५ ।।
साई शशि तो हम चकोर हैं दर्शन को तरसाते हैं।
अरुणोदय जो हुआ हृदय में साई साई साई हैं।। ८६ ।।
अंगुलि छूते सिहर है उठता माला का मणि साई है।
ऑंसू साई, स्वेद भी साई, अलख निरंजन साई है।। ८७ ।।
सोऽहं हंसारूढ है साई, गौरी शंकर साई है।
भवबंधमोचक साईनाथजी साई साई साई हैं।। ८८ ।।
लक्ष्मी साई, दुर्गा साई, सरस्वती भी साई है।
नर भी साई नारी साई, साई साई साई हैं।। ८९ ।।
ध्यान है साई, गान है साई सूर-ताल-लय साई है।
गति है साई, स्थिरता साई, साई साई साई हैं।। ९० ।।
साई रक्षा करो हमारी, सॉंस सॉंस में साई है।
जोर जोर से बजती ताली साई साई साई हैं।। ९१ ।।
मच्छिंद्र साई, गोरक्ष साई गहिनी साई साई है।
शिव है साई शक्ति साई साई साई साई हैं।। ९२ ।।
आदि है साई, अंत है साई मध्य भी साई साई है।
अनादि साई, अनंत साई साई साई साई हैं।। ९३ ।।
विवेक साई, संयम साई, विरक्ति साई साई है।
दयाक्षमाधृति शांति साई, साई साई साई हैं।। ९४ ।।
जो कोई मिलता साई लगता – भूतमात्र में साई है।
भेदबुद्धिको त्यज देनेपर साई साई साई हैं।। ९५ ।।
साईचिंतन है दुखभंजन मनका रंजन होता है।
ज्ञान का अंजन यह दिखलाता साई साई साई हैं।। ९६ ।।
इसी देह में साई सद्गुरु मोक्षस्थितिभी देते है।
अंगुलि धरकर धीरे चलते साई साई साई हैं।। ९७ ।।
दीप दीप में पानी भर कर साई ज्योत जलाते हैं।
तेजालंकृत द्वारकामाई साई साई साई हैं।। ९८ ।।
सीमापर आटा जो डाला पीडा कोसों भागी है।
भक्तोंका सच्चा रखवाला साई साई साई हैं।। ९९ ।।
कुत्ते को भी रोटी खिलायी तृप्त साईजी होते हैं।
आत्मा सबका एक ही है वह साई साई साई हैं।। १०० ।।
प्रेम दया समता है साई, श्रद्धा सबुरी साई है।
कॉंटों में खिलनेवाला वह फूल भी साई साई है।। १०१ ।।
समाधिसुख देते हैं साई कायापालट करते है।
भाव देखकर प्रसन्न होते साई साई साई हैं।। १०२ ।।
संतस्पर्शसे पावनभूमि शिरडी काशी लगती है।
उपासनी की सद्गुरुमूर्ति साई साई साई हैं।। १०३ ।।
तव चरणों पर रखकर माथा भक्त प्रार्थना करता है।
एकरूप सब संत हैं होते साई साई साई हैं।। १०४ ।।
माणिकप्रभु , शिरडी के साई, स्वामी समर्थ एकही है।
दत्तराजसम त्रिमूर्ति लगती साई साई साई हैं।। १०५ ।।
कल्याण निष्ठा का ही फल है निष्ठा प्रभु की देन है।
श्रद्धासे हरिको भजता वह साई साई साई हैं।। १०६ ।।
साई मेरी पूर्ण कामना हुई आपकी किरपा है।
इसी स्तवन में देंगे दर्शन, साई साई साई हैं।। १०७ ।।
गायक श्रीराम श्रोता श्रीराम साई भी श्रीराम है।
आत्मनिवेदन हुआ कृपासे साई साई साई हैं।। १०८ ।।
शिरडीनिवासी श्रीसाईनाथ महाराज की जय
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
लेखनकाल २६.३.१९७६ से ३१.३.१९७६
जहॉं देखूँ तहॉं साई है, साई साई साई हैं।। १ ।।
आप हमारे रखवाले, कर्ता, धर्ता, भर्ता हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, श्रीमहेशजी साई साई साई हैं।। २ ।।
धूप दीप नैवैद्य आप हैं पूजा पूजक पूज्य भी हैं।
आप ही श्रोता, आप ही वक्ता साई साई साई हैं।। ३ ।।
जल-थल में हैं, नभ में हैं, पवन आप का साक्षी हैं।
प्रकाश है तो रूप आपका ये सब साई साई हैं।। ४ ।।
शिरडी है गोकुल मोहन का मिट्टी का कण कहता हैं ।
साईस्पर्शसे पुनीत सब कुछ साई साई साई हैं।। ५ ।।
देह न हूँ मैं –आत्मतत्व तो निश्चित कालातीत हैं।
सोऽहं सोऽहं नाद अनाहत साई साई साई हैं।। ६ ।।
दृष्टी आपकी प्रेममयी है – करुणासे नहलाती है।
हृत्स्पंदनभी यही सुनाता साई साई साई हैं।। ७ ।।
‘प्यार करो रे, सब्र करो रे’ तन का कणकण रटता है।
शिरडी तन हैं मंदिर – आत्मा साई साई साई हैं।। ८ ।।
साई साई रटते रटते रोना हँसना बनता है।
ऊँचे स्वर में गायक गाता - साई साई साई हैं।। ९ ।।
जन्म न गर तो कैसी मृत्यु अजर अमर श्रीसाई हैं।
सर्वव्यापी, करुणासागर साई साई साई हैं।। १० ।।
साधक कैसे साईजी? माधव का अवतार है।
हाथ जोडकर हम हैं कहते - साई साई साई हैं।। ११ ।।
साईमूर्ती है मनभावन व्यथा दुख बिसराती है।
दवा नाम है सब रोगोंका साई साई साई हैं।। १२ ।।
उदी सुगंधित पुलकित करती ध्यान सहजही लगता है।
अंदर शिवजी यही सुनाते साई साई साई हैं।। १३ ।।
हकीम साई, मैया साई, सद्गुरु साई साई है।
परब्रह्म सत्स्वरूप साई, साई साई साई हैं।। १४ ।।
अपना अपना काम करो गाओ भगवान दयालू है।
जिसे न कोई रखनेवाला उसका साई साई हैं।। १५ ।।
रोटी कपडा, कुटि हो छोटी चाह न मनमें दूजी है।
रहे हाथ ये सेवा में रत साई साई साई हैं।। १६ ।।
शिला नहीं सिंहासन है यह जिसपर साई बैठे हैं।
विश्वप्रेम का यही संदेशा साई साई साई हैं।। १७ ।।
श्वेत वसन ये साईनाथजी हृन्मंदिर में सोहत हैं।
जीवन का तो एक ही गाना साई साई साई हैं।। १८ ।।
पूजाविधि हम नहीं जानते मंत्र न हम को आवत है।
मंत्राक्षर बन बैठे मुँह में साई साई साई हैं।। १९ ।।
साईजीवन लीलासागर इस का जल तो मीठा है।
एक एक स्मृति मधुर आचमन साई साई साई हैं।। २० ।।
गद्दीपर बैठे जो साई ॐ स्वरूप ही लगते हैं।
श्रद्धा के जो सुमन चढाएं साई साई साई हैं।। २१ ।।
नयनों से झरते हैं ऑंसू वे तेजस्वी मोती है।
उन की माला उन्हें समर्पित साई साई साई है।। २२ ।।
साई शिव जी जागृत रहकर जीवन शिवमय करते हैं।
श्वासों के रुद्राक्ष हैं कहते साई साई साई हैं।। २३ ।।
अशिव जलाकर भस्म बना वह उदी हमारी प्यारी है।
उस का कण कण नवसंजीवन साई साई साई हैं।। २४ ।।
हृदयही बन्सी श्वसन नाद है बन्सीधर श्रीसाई हैं।
इंद्रिय गौऍं प्रेमांकित सब साई साई साई हैं।। २५ ।।
मेहेरबान हैं साई भक्तपर हाथ पकडकर लिखते है।
साई सद्गुरु बडे कृपालु साई साई साई है।। २६ ।।
गीतागायक माधव साई जीवन उन का गीता है।
ज्ञान कर्म और भक्ति सबकुछ साई साई साई हैं।। २७ ।।
रंजन अंजन, दुख का भंजन साई साई साई हैं।
सर्वेश्वर, योगीश्वर सद्गुरु साई साई साई हैं।। २८ ।।
गोदा गंगा शिरडी काशी श्रीसाई श्रीशंकर है।
गंगा का जल प्यास बुझाता साई साई साई हैं।। २९ ।।
जाति न पूछो, पंथ न पूछो यहॉं ज्ञान ही ज्ञान है।
प्रेम का दूजा नाम धरापर साई साई साई हैं।। ३० ।।
नीम वृक्ष के तले बैठकर चिंतन जिस का चलता है।
सुशांत मन से अंदर देखत साई साई साई हैं।। ३१ ।।
बहुत दूरसे आया जोगी निर्जन जिस को प्यारा है।
तपाचरणमें समय बिताते साई साई साई हैं।। ३२ ।।
कडी धूप हो या ठंडक हो गिरि के सम जो निश्चल है।
अमृत को बरसानेवाला साई साई साई हैं।। ३३ ।।
धरती शय्या नभ ही चादर साई निर्भय सोते हैं।
तन की चिंता जरा न जिस को साई साई साई हैं।। ३४ ।।
जन्मत्यागी श्रीसाईजी विरक्ति लेकर आये हैं।
तप के बलपर आत्मतृप्त जो साई साई साई हैं।। ३५ ।।
महाराष्ट्र की पावन भूमि संतचरणरज लेती है।
पेडों के पत्ते भी गाते साई साई साई हैं।। ३६ ।।
जहॉं रहे श्रीसाईनाथजी धर्मक्षेत्र बन पाया है।
गुरु की महिमा यही गरजती साई साई साई हैं।। ३७ ।।
नाथ पंथ के गंगागीरजी गुण साईके गाते हैं।
शिर्डी विकसित यही कहेगी साई साई साई हैं।। ३८ ।।
जिस स्थल बैठे पलट गया वहि घंटि मँगाकर बॉंधी है।
‘द्वारकामाई’ बोले साई – सुवर्णक्षण वह साई है।। ३९ ।।
साई आये यहीं रह गये स्वर्ग भूमिपर उतरा है।
अक्षयजागृत धुनी भी गाती साई साई साई हैं।। ४० ।।
घंटा बजकर याद दिलाती यह जमीन संतों की है।
अद्वय अनुभव देनेवाले साई साई साई हैं।। ४१ ।।
मानव ही है जाति धरापर सेवा सच्चा धर्म है।
“सत्य धर्म का पालन जीवन” साई साई साई हैं।। ४२ ।।
घंटा की ध्वनि सोऽहं, सोऽहं अंदर देव जगावत है।
दृष्टि प्रेम की यही दिखाती साई साई साई हैं।। ४३ ।।
यहीं बैठकर साई शिवजी कृपा बॉंटते आये है।
शुद्ध सत्त्व का सागर साई, साई साई साई हैं।। ४४ ।।
जब साई जी भोजन करते कुत्ते रोटी लेते हैं।
कौए लेते कौर हाथ से प्रसाद साई साई हैं।। ४५ ।।
साई हँसकर जूठा खाना प्रेम भाव से खाते हैं।
जिसने देखा मधुर दृश्य वह साई साई साई हैं।। ४६ ।।
सारी दुनिया है ईश्वर की भेदाभेद क्यों मन में है?
जो कोई हमसे बातें करता साई साई साई हैं।। ४७ ।।
किसे विठोबा किसे दाशरथि किसे कन्हैया भाता है।
उसी रूप में पाता दर्शन साई साई साई हैं।। ४८ ।।
शिरडी को जब लाते बाबा कृपाहस्त ही रखते हैं।
उन्नति का तो रहस्य सुंदर साई साई साई हैं।। ४९ ।।
सगुण है साई, निर्गुण साई स्थिर अस्थिर सब साई है।
अनादि साई अनंत साई, साई साई साई हैं।। ५० ।।
साईकृपा से साई चिंतन मन में प्रतिपल होता है।
शिरडी पहुँचा मन से भी वह साई साई साई हैं।। ५१ ।।
राम कृष्ण हरि जप है प्यारा साई स्वरूप कहते हैं।
सोऽहं मय जीवन जो करते साई साई साई हैं।। ५२ ।।
भाव चाहिये विशुद्ध कोमल गंगा यमुना ऑंसू हैं।
अंत:स्थल की शिरडी में स्थित साई साई साई हैं।। ५३ ।।
अक्कलकोट के स्वामी साई माणिकप्रभु भी साई है
दासगणू के सद्गुरु साई, साई साई साई हैं।। ५४ ।।
नील गगन में उडती चिडियॉं चहक भी उनकी साई है।
उपवन में जो फूल खिले हैं खुशबू उनकी साई है।। ५५ ।।
भूला भटका आए पथपर साई मॉं की इच्छा है।
सरल पंथपर लानेवाले साई साई साई हैं।। ५६ ।।
कभी किसी का दिल न दुखाना साईजी का कहना है।
आत्मतत्त्व, चेतना ईश्वरी साई साई साई हैं।। ५७ ।।
साई नाममें जो है शक्ति साईभक्तही जानत है।
आत्मा का बल नित्य बढाता साई साई साई हैं।। ५८ ।।
प्रसाद दे दो हम को साई याचक बनकर आए हैं।
हमें भी दानी जो कर पाता साई साई साई हैं।। ५९ ।।
मस्तकपर जो सफेद कपडा मन धवलित करता है।
गौरवर्ण श्रीसाई तन का तन को पुलकित करता है।। ६० ।।
मंदिर साई, मस्जिद साई गिरिजाघर भी साई है।
भक्त है, साई प्रभु भी साई, साई साई साई हैं।। ६१ ।।
निर्मल तन हो, निर्मल मन हो यह छोटी सी आशा है।
शरणागत अनुतप्त है गाता साई साई साई हैं।। ६२ ।।
ना मॉंगू मैं सोनाचॉंदी शुद्ध ज्ञान की प्यास है।
हाथ पीठपर फिरे सर्वदा साई साई साई हैं।। ६३ ।।
यों ही रोता यों ही चिढता, विकार राजा जैसा है।
आधिपत्य मिट जाए उसका साई साई साई हैं।। ६४ ।।
साई भाषण, साई चिंतन, साई भोजन लगता है।
साई निद्रा साई जागृति साई साई साई हैं।। ६५ ।।
जन्म मरण की चिंता जाए, भक्ति ही जीना लगता है।
चरणभक्तिका प्रार्थी गाता साई साई साई हैं।। ६६ ।।
इन षड्रिपुसे लडते लडते जीव अकेला थकता है।
कृपादान इसलिए मॉंगता साई साई साई हैं।। ६७ ।।
दत्तगुरु श्रीसाईनाथजी जिस गाने में भाव है।
गानकला मैं वही मॉंगता साई साई साई हैं।। ६८ ।।
पढना-लिखना साई साई सुनना–कहना साई है।
विचार करना ध्यान करना साई साई साई हैं।। ६९ ।।
दुख में साई सुख में साई प्राणोंसे भी सन्निध हैं।
श्वास श्वास में भासित होता साई साई साई हैं।। ७० ।।
पॉंच घरों की भिक्षा काफी बाकी सब बकवास है।
सुख में दुख में हँसते जीना साई साई साई हैं।। ७१ ।।
जहॉं बैठॅूं वहॉं लगे समाधि और नहीं कुछ मॉंगत है।
यह तन्मयता, मन की शुचिता साई साई साई हैं।। ७२ ।।
श्रीनारायण जय नारायण साई साई साई हैं।
वासुदेव हरि । पांडुरंग हरि। साई साई साई हैं।। ७३ ।।
साई नाम का अमृत पीकर कोमलता वाणी में है।
लोहे का सोना जिसने बनाया साई साई साई हैं।। ७४ ।।
मीरा मधुरा मनमें गावत साईकृष्ण बलिहारी है।
राधाधरमधुमिलिंद साई, साई साई साई हैं।। ७५ ।।
इस फकीर को देख अमीरी पदस्पर्श को झुकती है।
निर्मोही श्वेतांबर साई, साई साई साई हैं।। ७६ ।।
देहदु:ख को दूर भगावत करुणाघन श्रीसाई है।
आत्मसौख्य का दूध पिलाती मैया साई साई हैं।। ७७ ।।
साई मुकुंद भक्त गोपियॉं शिरडी तो वृंदावन है।
श्रद्धा की मुरली है गाती साई साई साई हैं।। ७८ ।।
राम रघुराई श्री साई कृष्ण कन्हैया साई है।
झनननन बजकर झॉंजभी गाती साई साई साई हैं।। ७९ ।।
मधुर मधुर बजकर शहनाई साई गुणको गाती है।
झूम झूम कर रागिणि गावत साई साई साई हैं।। ८० ।।
श्रीपाद श्रीवल्लभ यतिवर साई साई साई हैं।
नृसिंह सरस्वति सद्गुरु साई, साई साई साई हैं।। ८१ ।।
कुंडलिनी जगदंबा साई दशा उन्मनी साई है
राधा का पागलपन साई, साई साई साई हैं।। ८२ ।।
मैं हूँ साई, तू है साई, सब कुछ साई साई है।
विश्व व्यापकर शेष रहे वह साई साई साई हैं।। ८३ ।।
साई मैया हमें खिलाती तृप्तभाव से देखत है।
हमें हँसाकर आप है हँसती साई साई साई हैं।। ८४ ।।
कृष्णनाथ वह, रामनाथ वह, दत्तनाथ वह साई है।
आदिनाथ वह, ज्ञाननाथ वह, साई साई साई हैं।। ८५ ।।
साई शशि तो हम चकोर हैं दर्शन को तरसाते हैं।
अरुणोदय जो हुआ हृदय में साई साई साई हैं।। ८६ ।।
अंगुलि छूते सिहर है उठता माला का मणि साई है।
ऑंसू साई, स्वेद भी साई, अलख निरंजन साई है।। ८७ ।।
सोऽहं हंसारूढ है साई, गौरी शंकर साई है।
भवबंधमोचक साईनाथजी साई साई साई हैं।। ८८ ।।
लक्ष्मी साई, दुर्गा साई, सरस्वती भी साई है।
नर भी साई नारी साई, साई साई साई हैं।। ८९ ।।
ध्यान है साई, गान है साई सूर-ताल-लय साई है।
गति है साई, स्थिरता साई, साई साई साई हैं।। ९० ।।
साई रक्षा करो हमारी, सॉंस सॉंस में साई है।
जोर जोर से बजती ताली साई साई साई हैं।। ९१ ।।
मच्छिंद्र साई, गोरक्ष साई गहिनी साई साई है।
शिव है साई शक्ति साई साई साई साई हैं।। ९२ ।।
आदि है साई, अंत है साई मध्य भी साई साई है।
अनादि साई, अनंत साई साई साई साई हैं।। ९३ ।।
विवेक साई, संयम साई, विरक्ति साई साई है।
दयाक्षमाधृति शांति साई, साई साई साई हैं।। ९४ ।।
जो कोई मिलता साई लगता – भूतमात्र में साई है।
भेदबुद्धिको त्यज देनेपर साई साई साई हैं।। ९५ ।।
साईचिंतन है दुखभंजन मनका रंजन होता है।
ज्ञान का अंजन यह दिखलाता साई साई साई हैं।। ९६ ।।
इसी देह में साई सद्गुरु मोक्षस्थितिभी देते है।
अंगुलि धरकर धीरे चलते साई साई साई हैं।। ९७ ।।
दीप दीप में पानी भर कर साई ज्योत जलाते हैं।
तेजालंकृत द्वारकामाई साई साई साई हैं।। ९८ ।।
सीमापर आटा जो डाला पीडा कोसों भागी है।
भक्तोंका सच्चा रखवाला साई साई साई हैं।। ९९ ।।
कुत्ते को भी रोटी खिलायी तृप्त साईजी होते हैं।
आत्मा सबका एक ही है वह साई साई साई हैं।। १०० ।।
प्रेम दया समता है साई, श्रद्धा सबुरी साई है।
कॉंटों में खिलनेवाला वह फूल भी साई साई है।। १०१ ।।
समाधिसुख देते हैं साई कायापालट करते है।
भाव देखकर प्रसन्न होते साई साई साई हैं।। १०२ ।।
संतस्पर्शसे पावनभूमि शिरडी काशी लगती है।
उपासनी की सद्गुरुमूर्ति साई साई साई हैं।। १०३ ।।
तव चरणों पर रखकर माथा भक्त प्रार्थना करता है।
एकरूप सब संत हैं होते साई साई साई हैं।। १०४ ।।
माणिकप्रभु , शिरडी के साई, स्वामी समर्थ एकही है।
दत्तराजसम त्रिमूर्ति लगती साई साई साई हैं।। १०५ ।।
कल्याण निष्ठा का ही फल है निष्ठा प्रभु की देन है।
श्रद्धासे हरिको भजता वह साई साई साई हैं।। १०६ ।।
साई मेरी पूर्ण कामना हुई आपकी किरपा है।
इसी स्तवन में देंगे दर्शन, साई साई साई हैं।। १०७ ।।
गायक श्रीराम श्रोता श्रीराम साई भी श्रीराम है।
आत्मनिवेदन हुआ कृपासे साई साई साई हैं।। १०८ ।।
शिरडीनिवासी श्रीसाईनाथ महाराज की जय
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
लेखनकाल २६.३.१९७६ से ३१.३.१९७६