Shriram Balakrishna Athavale's Literature
Friday, February 2, 2024
संवादाची साध कला!
संवादाची साध कला!ध्रु.
वाद तुटावा
भेद मिटावा
आळव आळव घननीळा!१
स्नेह वाढु दे
भाव भरू दे
विश्वंभर विश्वी भरला!२
संशय सरू दे
विवाद विरू दे
जो परमार्थी तोच भला!३
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
२२.०७.१९७७
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