"कृष्ण, कृष्ण" बोलो! ध्रु.
मनमंदिर में बैठे कबसे
दर्शन को हैं अति अति तरसे
तुम गीता गालो।१
क्या करना है? कैसे करना?
न रहे कुछभी क्षुद्र वासना
वासुदेव चुन लो।२
आसन सुस्थिर हो जाएगा
वदन सुमन सा खिल पाएगा
अनुभूति ले लो।३
पार्थ बनोगे सार्थ सुनोगे
कार्य करोगे, फल छोड़ोगे
कृष्ण स्वयं बन लो।४
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
१ अगस्त २००४ रविवार
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