Thursday, September 25, 2008

हरिगीतापाठ अध्याय १

अध्याय १ - अर्जुनविषाद योग 

करी गीतापाठ संस्कृत प्राकृत 
अंतरी पहाट होईल बा 

पार्थसारथी तो सूत्रधार होतो 
शरण जो जातो पूर्ण त्याचा 

प्रश्न ’करू काय’ धरी पाय
भूक गीतामाय भागवील 

’लढेन मी’ गर्व ’न लढेन’ गर्व 
देह मी हा भाव दु:खमूळ 

जनांत मनात घोक गीतापाठ 
कृष्ण धरी हात चालवाया 

गीता कालातीत गीता स्थलातीत 
गीत धर्मरीत राम सांगे 


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