Tuesday, April 18, 2023

पसायदान भावानुवाद

आता विश्वात्मके देवे। या सेवेने तुष्ट व्हावे। 
तोषोनिया दान द्यावे। प्रसादाचे।।१।।

दुर्जनमतिची सरो वक्रता। सत्कर्माची वाढो आस्था 
परस्परांशी मैत्री जुळता। होई सौख्य।।२।।

जावो अंधार पातकाचा। प्रकाश येवो स्वधर्मरविचा 
येवो अनुभव सद्भावाचा। इष्टलाभे।।३।।

सकल मंगलांचा वर्षाव। करीत फिरो भक्तसमुदाव 
गुरुकृपेचा नवलाव। दिसो सर्वां।।४।। 

चालते हे कल्पतरु। चिंतामणींचे आगर 
संत बोलते सागर। अमृताचे ।।५।।

निष्कलंक निशाकर। तापहीन हे भास्कर 
सदा सज्जन साधुवर। बंधु व्हावे।।६।।

किंबहुना आत्मसुखे। तिन्ही लोक पूर्ण व्हावे 
आदिनाथा त्या भजावे। अखंडित।।७।।

हा ग्रंथ जो पठण करी। तो या लोकी विशेषी 
विजयी व्हावा दृष्टादृष्टी। विश्वनाथा।।८।। 

तरी बोले विश्वनाथ। हा झाला दानप्रसाद
आशीर्वचने ज्ञाननाथ। आत्मतृप्त।।९।।

भावानुवाद : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
प्रेरणा - श्रीनृसिंह मंदिरात नित्य सायंकाळी वैयक्तिक  उपासनेस येणारे श्री रा गो जोशी यांनी पसायदान सोप्या भाषेत लिहा असे सुचविले
पूर्ती १६.०८.१९८४

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