Sunday, October 11, 2020

गीतेचे सार..

अर्जुनाच्या विषादाने         जिज्ञासा जागली असे
धर्म्य काय असे युद्ध          पार्था भोवळ येतसे १

आत्मा न जन्मतो नाशे      कार्य कर्म न चूकते
स्थितप्रज्ञ सदा शांत          पाप त्याला न लागते २

कामक्रोध महावैरी            झुंजायाचे तयासवे
यज्ञार्थ कर्म ना बाधे          अर्जुना पूस आसवे ३

ज्ञानयज्ञ असे थोर             पापा निमिषि लोपवी
मुमुक्षू करुनी कर्मे            अंतरात्म्यास तोषवी ४

कर्मयोग असे सोपा          संग सोडी धनंजया
आत्मनिष्ठ समाधानी        साध वीरा मनोजया ५

आवरी मन अभ्यासे         आत्मोध्दार स्वये करी
वैराग्ये साधतो योग          सन्मार्गी नेट तू धरी ६

उत्पत्ति स्थिति संहार        जगाचा माधवामुळे
व्यापुनी सर्व हे विश्व         राहिला तो दशांगुळे ७

सर्वदा  स्मरता कृष्णा       अंतकाळी मिळे गती 
आत्मज्ञान जया लाभे       योगी मोहन पावती ८

अनन्यभक्त हो माझा        माझे यजन तू करी
योजुनी मन तू ऐसे           प्रेमे जिंक पहा तरी ९

बुद्धियोग स्वये देतो         भक्ति पार्था करी अशी
विभूती मुख्य जाणूनी      योग्यता मिळवी कशी १०

अनन्यभक्तिने होते          शक्य जे रूप पाहणे
जाणुनि महिमा त्याचा     प्रर्थिले शीघ्र अर्जुने ११

सगुणी निर्गुणी भक्ती       ते दोन्ही सारखे प्रिय
फलत्यागी स्थितप्रज्ञ        ज्ञानी ध्यानी अतिप्रिय १२

शरीर म्हणजे क्षेत्र           आत्मा क्षेत्रज्ञ बोलती 
सर्व देही वसे आत्मा        निर्विकार नि अकृती १३

त्रैगुण्य म्हणजे काय        कर्ता ना त्रिगुणांविना
गुणातीत खरा भक्त        कृष्ण सांगे स्वये खुणा १४

वाढला वृक्ष अश्वत्थ        खाली फांद्या वरी मुळे
वैराग्य शस्त्र छेदाया        मोहने अर्जुना दिले १५

दैवी संपद् मोक्षदात्री       आसुरी दे अधोगती
अश्रद्ध जे दिशाहीन        त्यांना कोठुन सद्गती १६

कार्याकार्य कळे भेद       आदरे शास्त्र पाहता 
ॐ तत् सत् अशा बोले    संकल्पा येत पूर्णता १७

निःशंक पार्थ हो आता     हासे त्याची प्रसन्नता 
कर्तव्यस्मृति ही होता      पार्थ कृष्णच तत्त्वतः १८ 

गीतेचे सार मी नित्य       पाजावे तृषिता जना
स्वरूपानंद ध्यानात        हृष्ट तुष्ट दिसे मना १९

कृष्ण कर्ता कृष्ण वक्ता   ग्रंथकर्ताहि कृष्ण तो 
अंतरीच्या प्रकाशात        राम कृष्णास वंदितो २०

जीवनात असे गीता        जैसी त्याला कळे तशी 
अमृताची तया गोडी       जो जो सेवी तया तशी २१

।।श्रीकृष्णार्पणमस्तु।।
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले
३१.१०.१९८२

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