Wednesday, September 14, 2022

तू गीता मन में पढ ले तू गीता जन में गा ले



तू गीता मन में पढ ले
तू गीता जन में गा ले
तू मुक्‍त वायुमंडल में
छिन सुखद सॉंस तो ले ले । १

जो योगी है संन्‍यासी
मन में ना कभी उदासी
स्मितवदन तथा मितभाषी
यह बात ध्‍यान में ले ले । २

उत्‍कर्ष हाथ में होता
अपकर्ष हाथ में होता
अरि मित्र स्‍वयं ही बनता
दक्षताही तू अपना ले । ३

सुखदुख है आते जाते
हरिदास भजन ही करते
आसन से लेश न हिलते
आनंद ध्‍यान का ले ले । ४

मन जिस के वश में आया
वह श्रीहरि का मनभाया
बिंदु में ही सिंधु समाया
भावार्थ समझ में ले ले । ५

खोया है उसने पाया
सुख यहॉं साप की छाया
साधन है नश्‍वर काया
मोहन को तू अपना ले । ६

द्वंद्वो को सहनेवाला
दुख में भी हसनेवाला
बन ऐसाही मतवाला
अनुभूति आप ही ले ले । ७

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले

तू गीता मन में पढ ले
तू गीता जन में गा ले 
तू मुक्‍त वायुमंडल में 
छिन सुखद सॉंस तो ले ले । १  

कर्म करना हर किसी को 
विवश है यहॉं हर कोई 
बुद्धि से यदि देख ले तो 
ज्ञानसाधन कर्म ही । २ 

मन से वश कर इंद्रियों को 
छोड दे तू मैं मेरा 
कर्म जनहित के लिए जो 
यज्ञ है सुंदर तेरा । ३ 

भावना सहकार की है 
स्‍नेह की नवनिर्मिति 
आयु उस की सफल है 
जो सन्‍मती है सुकृती । ४  

प्रकृति है सब कराती 
हॅू मैं कर्ता भ्रांति है 
चित्‍त रखता ईश में जो 
मुक्‍त है, विभ्रांत है । ५ 

आस, ममता त्‍याग कर 
तू कर्म हाथों से करे 
दुख क्‍या है, डर भी क्‍या है 
शांति से संग्राम करें । ६ 

काम जो है, क्रोध जो है 
ज्ञान को वे ही मिटाते 
इंद्रियोंका दमन करते 
वीरवर है विजय पाते । ७ 

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले

तू गीता मन में पढ लें 
तू गीता मन में गा ले 
तू मुक्‍त वायुमंडल में 
छिन सुखद सॉंस तो ले ले । १ 

शरचाप गिर पडें भूपर 
वह रोया मुँह को ढककर 
मैं नही लडूँगा कृष्‍ण 
क्‍यों पाप लूँ मेरे सिरपर । २ 

जो शरण में आया अपनी 
हो कितना भी अज्ञानी 
ईशने सीख दे नामी 
कर दिया है उस को ज्ञानी । ३ 

इस तन की कौन बडाई 
आत्‍मा की है परछाई 
कर्तव्‍य ही करना होगा 
तू जन को उत्‍तरदायी । ४ 

प्रज्ञा को स्थिर है रखना 
कभी अस्थिर ना हो देना 
सुखदुख को समही समझ तू 
बस मन को सुमन बनाना । ५   

शांति अक्षय धन है 
लडना यहॉं अटल है 
निर्वैर हो पहले पार्थ 
युद्धही तपश्‍चर्या है । ६ 

श्रीव्‍यास अतुल पंडित है 
संवाद तो रोचक ही है 
जी जान से कोई पढ ले 
संतोष मधुरतम फल है । ७   

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले

तू गीता मन में पढ ले
तू गीता जन में गा ले
तू खुली हवा में प्यारे
जरा मुफ्त सॉंस तो लेले।१

ना समझ पार्थ ने पहले 
एक कदम तो गलत उठाया
श्रीकृष्ण सारथी ने तो 
गलती को सुधर दिया।२

ये काम क्रोध तो दैत्य - 
मायावी कपटी हैं ही
भूल का समर्थन करना
है पातक मेरे राही। ३

अपना है कौन पराया
कुछ भी न समझ में आया
श्रीहरिजी कुछ भी न बोले
मौन से मित्र फिर जिता।४

अँधेरा छाया लगता
ये चोटभी गहरी पहुँची
ये बुँद बुँद आसू की
दीक्षा दे सोच समझ की।५ 

श्रीकृष्ण कृष्ण गर गाता
तू हरि को जागृत करता
तो कभी न प्यारे तुझको 
पछताना योंही पडता।६ 

इस विषाद ने सत्कार्य
इतना तो जरूर किया है
शिष्य को लाभ सद्गुरु का
अद्भुत ये हरि लीला है, अद्भुत ये हरि लीला है। ७


रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले


तू गीता मन में पढ ले
तू गीता जन में गा ले 
तू मुक्‍त वायुमंडल में 
छिन सुखद सॉंस तो ले ले। १ 

जो योग है तुझे बताया 
वह परंपरा से आया 
तू सखा तथा है भक्‍त 
अति सुयोग्‍य तुझ को पाया। २ 

जब धर्महानि होती है 
जय अधर्म की दिखती है 
प्रभु अपना रूपही रचकर 
अवतीर्ण हुआ लगता है। ३ 

ये जनम करम का कूट 
जिस जिसने होगा जाना 
वह प्रपंच से है मुक्‍त 
मैंने/मुझसे न अलग है माना। ४ 

सज्‍जन की रक्षा करना 
दुर्जन को दंड दिलाना 
धर्म की स्‍थापना करना 
अवतारहेतु है माना। ५ 

ना चाहा फल कर्मों का 
बंधन ना आसक्ति का 
मैं प्रेमी निर्मोही का 
माधव हॅूं अर्जुनजी का। ६ 

आसक्ति गई जब मन से 
कर्तव्‍य लगा पूजन सा 
जो योगी है वही ज्ञानी 
नर नारायण के जैसा। ७

रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले

तू गीता मन में पढ ले 
तू गीता जन में गा ले 
तू मुक्‍त वायुमंडल में 
छिन सुखद सॉंस तो ले ले। १  

ज्ञानयोग से कर्मयोग है 
सुगम अधिक मत मेरा 
प्रकृति करती, वही मिटाती 
खेल उसी का सारा। २ 

छोड फलाशा कर्म करे जो 
स्‍वास्‍थ्‍य बडा पाता है 
सच्‍चा मानव केवल अपने 
लिए नही जिता है। ३ 

कर्म सिखाता, वही परखता 
मन को शुद्ध है करता 
मनमंदिर में भक्‍तजनोंके 
नाम ही मन बन जाता। ४ 

काम करे हर कोई अपना 
श्रद्धा रखकर मन में 
सशक्‍त बनता है उसका तन 
समाधान है घर में। ५ 

आत्‍मा में जो योगी रमता 
ज्ञानी है कहलाता 
आदि अन्‍तवाले भोगों से 
लेश न विचलित होता। ६ 

क्‍या है बाहर देखो अंदर 
राम कृष्‍ण बैठे है 
बिना शब्‍द के चुपके चुपके 
मिलन मधुर होता है। ७ 
   
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्‍ण आठवले 




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